March 19, 2024

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किशनगंज विधानसभा की राजनीतिक पोस्टमॉर्टम

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शासन शहर से चलता है

जैसे जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहा है वैसे वैसे राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म होता जा रहा है। इन्ही चर्चाओं और राजनीतिक परिदृश्य में आज बात करते हैं किशनगंज विधानसभा की। बाकी विधानसभाओं से ये ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके अंतर्गत जिला मुख्यालय आता है अर्थात सारे विधानसभाओं का विकास कार्य मुख्यालय से ही कंट्रोल होता है। कहना गलत नहीं होगा और इतिहास भी गवाह है कि शासन हमेशा शहर से ही चलता है। फतेहपुर सीकरी भी कभी राजधानी हुआ करता था पर शासन नहीं चल सका और फिर वापस दिल्ली की ओर जाना पड़ा।

राजनीतिक खालीपन के दहलीज़ पर खड़ा किशनगंज

आज किशनगंज विधानसभा में जिस प्रकार नेतृत्व की कमी दिख रही है इससे साफ पता चलता है कि हमें शिक्षा के क्षेत्र में हो या, व्यवसाय के क्षेत्र में हो, या फिर राजनीतिक क्षेत्र में, किस प्रकार एक सोची समझी साजिश के तहत, और यहाँ की जनता की दूरदर्शिता के अभाव में राजनीतिक खालीपन के चौखट पर ला कर खड़ा कर दिया है। इसका नतीजा यही होगा कि लोग आज लीडर ढूंढने के बजाए राजनीतिक पार्टी के बैसाखी पर खड़ा है। राजनीति में विचारधारा से ज्यादा महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्तित्व मायने रखता है। बड़े पार्टी के नेता हो कर भी कमज़ोर व्यक्तित्व के कारण चुनाव हार जाते हैं और चुनाव के समय लोग मतदान के बजाए मज़बूरी दान पर विवश हो जाते हैं। जीते हुए नेता दिन काटने और उपलब्धि गिनाने के बजाए मज़बूरी गिनाने लगे तो समझ जाइए कि वो नेता नहीं बल्कि पाखण्डी है नेता को हमेशा मज़बूत होना चाहिए मजबूर नहीं।

किशनगंज विधानसभा का जातीय समीकरण

जिस अनुपात में हिन्दू मुसलमान वोटर्स हैं उसी अनुपात में इस विधानसभा में सुरजापुरी और गैर सुरजापुरी जाति की जनसंख्या है। इस विधानसभा में सबसे कम शिक्षा का प्रतिशत होते हुए भी यहाँ के लोग एकजुट रहे हैं और साम्प्रदायिक शक्तियों को पराजित किए हैं। जैसा कि पिछले चुनावों में देखा गया है लोग आँख बन्द करके काँग्रेस को वोट देते आए हैं पर आज मुसलमान वोटर्स को कंफ्यूज करने के लिए AIMIM जैसी पार्टी कोई आज कल कोई कसर नहीं छोड़ रही है। लायक और मज़बूत उमीदवार चुनाव में नहीं देने से जनता निराश हो कर गलत फैसला ले सकती है। इसलिए पार्टी आलाकमान को इस विधानसभा चुनाव में बहुत ही एहतियात से काम लेना होगा।

किशनगंज काँग्रेस पार्टी को चर्चित और तजुर्बाकार कैंडिडेट की तलाश

अब तक जितने भी कांग्रेस पार्टी के दावेदार नज़र आते हैं उन सभी में deserving कैंडिडेट बहुत कम या नहीं के बराबर है। जेब में पैसा और पार्टी का झण्डा से यहाँ की समस्याओं का समाधान नहीं है। पर सभी कैंडिडेट के प्रोफाइल को देखा जाए तो किसी के पास शैक्षणिक योग्यता की कमी है, किसी को तजुर्बा नहीं है, किसी को सीमित पंचायत स्तर पर ही लोग जानते हैं, किसी की छवि विधानसभा प्रत्याशी के रूप में लोगों को कबूल नहीं है, किसी को पोठिया प्रखण्ड के कुछ ही लोग जानते हैं दूसरी तरफ किशनगंज शहर और आसपास के लोग नहीं जानते हैं।

दूसरी तरफ जितने भी उमीदवार हैं उन सभी के प्रोफाइल और लोकप्रियता, ज़मीनी स्तर पर पता किया जाए तो फ़िरोज़ आलम से बेहतर कोई कैंडिडेट नहीं है। JNU के पूर्व छात्र होने के साथ साथ अपने क्षेत्र के लिए एक बेहतरीन राजनीतिक सोच और विज़न रखते हैं। पिछले साल विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं युवाओं और गाँव से लेकर शहर तक लोगों में शुरू से ही एक पहचान है, कन्हैया कुमार के साथ एक पोठिया के एलावे किशनगंज शहर में दो बड़ी सभाएं करा चुके हैं आम जनता तक अपनी पकड़ और पहचान मज़बूत कर लिए हैं। एक कर्मठ और अनुभवी कैंडिडेट होने के कारण किशनगंज विधानसभा सीट निकालने की क्षमता से परिपूर्ण हैं। चूंकि ये सीट कांग्रेस पार्टी के खाते में है इसलिए यहाँ की विकास और जिस प्रकार विरोधी पार्टियों के जड़ मज़बूत हो रहे हैं, इन सभी पहलू को ध्यान में रखते हुए साम्प्रदायिक ताकतों से लड़ने वाला योग्य उमीदवार को टिकट मिलना चाहिए। ये वक़्त की जरूरत है और जनता की मांग भी है।

(एक स्वतंत्र लेखक, सह राजनीतिक विश्लेषक)

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