‘अपनों’ ने ही तोड़ा भाजपा का ‘दिल’, जानिए कैसे?
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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए देखा गया भाजपा का मिशन 185 का सपना हवा होता दिख रहा है। गठबंधन की मजबूरियों ने भाजपा को अकेले अपने दम पर 185 सीटें जीतने के अरमानों पर पानी फेर दिया है।
मांझी को खेवनहार बनाने के बाद भाजपा का 185 सीटों पर चुनाव जीतना तो दूर वह इतने सीटों पर अकेले चुनाव भी नहीं लड़ पाएगी। गठबंधन दलों के जरिए सीट की मांग के बाद स्थिति कुछ इस कदर बन रही है कि भाजपा सूबे के महज 150 से 160 सीटों पर ही चुनाव लड़ पाएगी।
सहयोगी दलों के दबाव का ही परिणाम है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एक-एक कर बिहार के राजग दलों के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि खुद इन सहयोगी दलों के नेताओं ने शाह से कहा था कि वे उनकी बैठक बुलाकर बिहार की रणनीति को जल्द अंजाम दें।
इस प्रयास के तहत ही लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने पुत्र चिराग पासवान के साथ शनिवार को भाजपा अध्यक्ष से मुलाकात की। उपेंद्र कुशवाहा की शाह के साथ भेंट बृहस्पतिवार को हुई थी। तो पूर्व सीएम जीतन राम मांझी भी अमित शाह से मुलाकात कर एनडीए के साथ चुनावी गठबंधन का ऐलान कर चुके हैं।
पासवान का 80, तो 60 सीटों पर कुशवाहा का दावा
सूत्र बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भाजपा आलाकमान के समक्ष न्यूनतम 40 सीटों की मांग रख दी है। अगर वे 30 से 35 सीटें हथियाने में भी सफल रहे तो भाजपा सूबे की 150 से 160 सीटों पर चुनाव लड़ने को मजबूर होगी।
वहीं रामविलास पासवान की ओर से 80 सीटों का दावा है। उन्हें 35 से 40 सीटें मिल सकती हैं। जबकि रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने भी 60 सीटों की मांग रखी है। पार्टी की तरफ से उन्हें 20 से 25 सीटें देने के संकेत हैं।
हालांकि पार्टी ने राजद से अलग होकर जन अधिकार पार्टी बनाने वाले सांसद पप्पू यादव के साथ सीधे गठबंधन से परहेज की रणनीति बनाई है। उसे छवि की चिंता सता रही है। लेकिन वे रणनीतिक गठबंधन के हिस्सा रहेंगे।
बावजूद उसके राजद-जदयू नेता के तौर पर नीतीश कुमार की उम्मीदवारी तय होने के बाद भाजपा पर वोट का गणित बैठाने का दबाव है। इसी कवायद में वह अपने सहयोगी दलों की संख्या बढ़ाने को विवश है।
Courtesy: amarujala