उदारीकरण के बाद आया देश में कृषि संकट: नीतीश
1 min readमुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि 90 में आए उदारीकरण के कारण देश में कृषि संकट बढ़ा है। इससे उबारने के लिए नीति, सोच व नजरिया बदलने की जरूरत है। कॉरपोरेट फॉर्मिंग से कृषि संकट का समाधान नहीं हो सकता।
गुरुवार को एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में आयोजित व्याख्यान में सीएम ने कहा कि उदारीकरण के पहले लोग गरीबों के विरोध में नहीं बोलते थे। लोगों को झांसे में रखकर जो लोग आज सरकार में हैं, उसकी बुनियाद उसी समय की है। अभी युवा पीढ़ी इन बातों को नहीं समझ रही है। उन्हीं लोगों को वोट देने की बात कर रही है पर बिहार चुनाव के बाद समझ में आएगा।
जन-धन योजना का पैसा एक व्यक्ति को कर्ज में दे दिया गया। हजारों करोड़ खास लोगों को छूट दी जा रही है। ऐसे लोकहित से जुड़े विषय मुद्दा नहीं बन रहे हैं। बिहार में 89 फीसदी गांवों में और 76 फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं। किसानों के लिए कृषि रोड मैप बनाया है पर इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय स्तर पर कृषि की यही नीतियां रही तो बिहार में उसका असर नहीं होगा।
‘विषमता के दौर में कृषि एवं खाद संकट’ पर मुख्य वक्ता सह वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ ने कहा कि 19 सालों में देश में तीन लाख तो बिहार में 1318 किसानों ने आत्महत्या की। देश में 53 फीसदी लोग कृषि से जुड़े हैं पर किसान मात्र आठ फीसदी हैं। अनाज का उत्पादन बढ़ा है पर प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता की कमी है। किसानों की संख्या कम हो रही है।
किसानों की आत्महत्या कृषि संकट का नहीं, दुर्दशा का परिणाम है। शिक्षा मंत्री प्रशांत कुमार शाही, संस्थान के अध्यक्ष डॉ. डीएन सहाय ने भी विचार रखे। संस्थान के निदेशक डॉ. डीएम दिवाकर ने स्वागत, कुलसचिव प्रसमिता मोहंती ने धन्यवाद ज्ञापन तो संचालन प्रो नीलरतन ने किया। कार्यक्रम में संस्थान की दो शोध पत्रिका का भी विमोचन हुआ।
Courtesy: Live Hindustan